जैन और बौद्ध धर्म
जैन और बौद्ध धर्म के विकसित होने के कारण
- वैदिक काल के कर्म कांड अत्यंत महंगे थे जैसे बलि प्रथा |
- वैदिक काल के कर्म कांड जटिल भी थे |
- वर्ण व्यवस्था अत्यंत कठोर हो गयी थी |
- ब्राम्हणों की वर्चस्वता ने समाज में असंतोष फैला दिया था |
- धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में थे जो आम लोगो के समाज से परे थे|
बौद्ध धर्म
बुद्ध का जीवन –
- बुद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे जिन्हें सिद्धार्थ ,शाक्य मुनि ,और तथागत के नाम से भी जाना जाता था |
- इनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नमक स्थान परा हुआ था |
- इनकी पिता शुद्धोधन शाक्य गन के मुखिया थे माता महामाया थी परन्तु माता की मृतु के पश्यात इनका पालन पोषण सौतेली माता और मौसी गौतमी ने किया था |
- इनका विवाह यशोधरा से हुआ तथा इनके पुत्र का नाम राहुल था |
- इन्होने २९ वर्ष की आयु में गृह त्याग किया तथा ३५ वर्ष की आयु में निर्वाण की प्राप्ति की |
- इन्हें निर्वाण की प्राप्ति उरुवेला नमक स्थान पर पीपल के वृक्ष के निचे गया (बिहार) में हुई |
- इन्होने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था |
- इनका महापरिनिर्वाण(मृत्यु) ४८३ ई.पू में कुसिनारा(कुशीनगर) नमक स्थान पर हुआ |
- इनके सारनाथ में दिए पहले उपदेश को “धर्मचक्र परिवर्तन” कहा गया|
- बौध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश श्रास्वती में दिए थे |
बौद्ध संगीतिया
प्रथम :-
- वर्ष – 483 B.C
- स्थान –राजग्रिही
- अध्यक्ष -महाकश्यप
- शासन काल-अजातशत्रु
- परिणाम –बौध के उपदेशो को दो पिटको में संकलित किया गया -1) विनय पिटक 2)सुत्त पिटक
द्वितीय संगीति :–
- वर्ष –322 B.C
- स्थान –वैशाली
- अध्यक्ष –सर्वकामी
- शासन काल-कालाशोक
- परिणाम – मतभेदों के कारन बौध धर्म दो भागो में बता स्थविर और महासंधिक
तृतीय संगीति:-
- वर्ष – 250 B.C
- स्थान-पाटलीपुत्र
- अध्यक्ष-मोग्लिपुत्त तिस्स
- शासन काल-अशोका
- परिणाम-तृतीय पटिका अभिधम्म पटिका का संकलन किया गया
चतुर्थ:-
- वर्ष –72 A.D
- स्थान-कुंडलवन कश्मीर
- अध्यक्ष –वसुमित्र
- शासन काल- कनिष्क
- परिणाम-बौध धर्म दो भागो में बट गया –हीनयान और महाया
बौद्ध दर्शन-
- बौध धर्मे के अनुसार ज्ञान प्रति के दो स्त्रोत है -1)प्रत्यक्ष ज्ञान 2) अनुमानित ज्ञान
- प्रतीत्यसमुत्पाद –यह बुद्ध की सम्पूर्ण शिक्षा और उदेशो का सार है ,यह बुद्ध धर्म का केंद्रीय दर्शन है इसका अर्थ है सभी वस्तुए कार्य एवं कारण पर निर्भर करती है |
- जरामरण- . संसार में व्याप्त हर दुःख का सामूहिक नाम “जरामरण” है|
बुद्ध के जीवन से जुड़े 5 प्रतीक –
- जन्म- कमल और सांड
- गृहत्याग- घोडा
- ज्ञान-पीपल(बोधि वृक्ष)
- निर्वाण-पदचिन्ह
- महापरनिर्वाण-स्तूप
4 सत्य
- सम्पूर्ण संसार दुखो से भरा हुआ है |
- समस्त दुखो का कारन इच्छा है |
- यदि इच्छा पर विजय प्राप्त कर ली तो समस्त दुख का अंत हो जायेगा|
- इच्छा पर विजय प्राप्त करने के अष्टांगिक मार्क है|
अष्टांगिक मार्ग
- सम्यक दृष्टी
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी
- सम्यक कर्मान्त
- सम्यक आजीव
- सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधी
त्रिरत्न
- बुद्ध
- धम्म
- संघ
- अहिंसा का मार्ग – बौध धर्म में अहिंसा के मार्ग पर चलने को कहा गया है |
- बौध धर्मं कर्म के सिधांत पर विश्यास करता है अर्थात व्यक्ति अपने पूर्व में किये गए कारणों का फल प्राप्त करता है |
संघ
- संघ में संत (भिक्षुक और शर्मन ) तथा भिशुक महिलाये होती थी |
- बौध भिक्षुको धम्म के मार्गदर्शक कहा गया है |
- संघ में प्रवेश करनी वाली पहली महिला बुद्ध की सौतेली माँ गौतमी थी |जिसे शिष्य आनंद के अनुरोध पर संघ में शामिल किया गया था |
बुद्ध धर्म ग्रांथ – पाली या अर्धमागधी में लिखे गए है कुछ प्रमिक्ष निम्न लिखित है |
विनय पिटक:
- इसमें बुद्ध द्वारा बताये गए नियम लिखे गए है | ,
- संघ के निर्माण के बारे में लिखा गयाक है |
- c) इसमें बुद्ध की जीवन की घटनाओ के बारे में लिखा गया है
सुत्त पिटक–
- इसमें बुद्ध के आदर्शो के बारे में लिखा गया है |
- बुद्ध के भिन्न-भिन्न समय पर दिए गए मत|
अभिधम्म पिटक
- बौध धर्म के दर्शन |
- सत्य को कैसे खोजा जाये |
जातक कथा – बौध की जीवनी
महत्वपूर्ण तथ्य-
- बुद्ध के अनुसार आत्मा नही होती है परन्तु पुनर जन्म होता है|
- अहिंसा के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया |
- महेंगे कर्म कांडो का विरोध किया |
- बुद्ध धर्मं अशोक के शासन काल में अपने चरम पर था तथा देश विएशो में फैला |
बौध धर्म के पतन के कारण-
- ब्राम्हण शशको की वापसी |
- आपसी मतभेद |
- संस्कृत की वापस सरकारी भाषा बनना आदि |
जैन धर्म
- इसके संस्थापक रिषभनाथ थे जो पहले तीर्थंकर थे |
- कुल 24 तीर्थंकर हुए जो सभी क्षत्रिय थे .
- ऋषभनाथ के बारे में ऋग्वेद में भी लिखा गया है |
- अंतिम 2 तीर्थंकर है जो पौराणिक नही है |
- 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे (चिन्ह=साप) जो बनारस के राजा आश्वासन के पुत्र थे
- इन्होने 4 महाव्रत दिए –अहिंसा ,अस्तेय,सत्य और अपरिग्रह|
- 24वे तीर्थंकर वर्धमान महावीर हुए (चिन्ह=शेर) इन्होने पांचवा महाव्रत जोड़ा जो ब्रम्हचर्य था |
महावीर का जीवन परिचय –
- इनका जन्म 599 ई.पू में वैशाली के निकट कुंडलग्राम में हुआ था |
- इनके पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशाला थी ,इनका विवाह यसोदा से हुआ तथ पुत्री का नाम प्रियदर्शी था ,जामली इनके दामाद हुए |
- जामली इनके प्रथम अनुयायी बने
- इन्हें कैवल्य(ज्ञान) की प्राप्ति 42 वर्ष की आयु में जिम्भिक्ग्राम में रिजुपलिका नदी के किनारे हुई|
- इन्हें अरिहंत और जिन की उपाधि दी गयी .
- 72 वर्ष की आतु में इनकी मृतु 527 ई.पू में पावापुरी नमक स्थान पर हुई|
- यह बिम्बसार के समकक्ष थे |
निर्वाण के मार्ग (त्रिरत्न)
- सम्यक विश्वास
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक कर्म
महावीर द्वारा बताये गए प्रमुख सिद्धांत –
- इन्होने बडो के प्रधानता को निरस्त किया |
- भगवन के अस्तित्व को नाकारा
- कर्म को प्रधान बताया .
- समाज में समानता पर जोर दिया |.
- सम्पूर्ण संसार सार्वभौमिक सिद्धांत से चलता है |
पांच महाव्रत
- अहिंसा ,
- अस्तेय,
- सत्य
- अपरिग्रह|
- ब्रम्हचर्य(पहले चार पार्श्वनाथ के दिए गए थे )
जैन दर्शन
- स्याद्वाद
- अनेकान्तवाद
प्रमुख साहित्य –
- 12 अंग
- 12 उपांग
- 10 प्रकीर्ण
- 6 छेदी सूत्र
- 4 सूत्र
जैन संगीतिया
- प्रथम–3rd शताब्दी ई.पू
- स्थान- पाटलिपुत्र
- अध्यक्ष – स्थुलभाद्र
- परिणाम- 12 अंगो को जोड़ा गया |
- द्वितीय -5वि शताब्दी
- स्थान-वल्लभी
- अध्यक्ष- देवृधिगनी
- परिणाम-12 अंग तथा 12 उपांगो को जोड़ा गया |
जैन धर्म में फुट–
जैन धर्मं 2 भागो में बता था
- दिगंबर –नग्न , नेता –भद्रबाहु
- श्वेताम्बर-सफ़ेद वस्त्र धारण करने वाले ,नेता –स्थुलबाहू